Thu. Apr 18th, 2024
  • जेल में तरह-तरह के अत्याचार सहे, मगर आपातकाल का विरोध करना नहीं छोडा था
  • चौधरी अनूप सिंह के बेटे सुशील अनूप सिंह ने आपातकाल की यादें ताजा कीं

राजकुमार राणा

सुशील अनूप सिंह
स्व. चौधरी अनूप सिंह


गाजियाबाद। 25 जून 1975 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने देश में आपातकाल घोषित कर दिया था। इसका उस समय के लोकतंत्र प्रहरियों ने ना सिर्फ विरोध किया था, बल्कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए जेल जाकर खूब अत्याचार तक सहे। वरिष्ठ समाज सेवी सुशील अनूप सिंह के पिता चौधरी अनुप सिंह ऐसे ही लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी थे, जिन्हें आपाताकल का विरोध करने पर एक वर्ष तक जेल में रहना पडा था। सुशील अनूप सिंह बताते हैं कि उनके पिता चौधरी अनूप सिंह पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह के खास थे और उनके आहवान पर ही उन्होंने अपने साथियों के साथ उनके जन्मदिन 23 दिसंबर 1975 को घंटाघर स्थित शहीद भगत सिंह की प्रतिमा के नीचे सत्याग्रह किया तो पुलिस ने उन्हें उनके 12 साथियों समेत गिरफतार कर मेरठ की अब्दुल्लापुर जेल में बंद कर दिया था।
जेल में होते थे तरह-तरह के अत्याचार
सुशील अनूप सिंह के अनुसार उनके पिता चौधरी अनूप सिंह ने बताया कि जेल में आपातकाल का विरोध करने वालों के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया जाता था। इतना बुरा व्यवहार अपराधियों के साथ भी नहीं होता था, जितना कि उनके साथ होता था। उनसे तरह-तरह के काम तो लिए जाते ही थे, साथ ही बहुत अत्याचार भी किए जाते थे। यहां तक कि खाना भी बहुत खराब दिया जाता था। इसका उन्होंने विरोध किया तो खाना तो ठीक मिलने लगा मगर अत्याचार का सिलसिला तो बढता ही चला गया, मगर लोकतंत्र की रक्षा के लिए उन्होंने सब कुछ सहा।
परिवार को एक सप्ताह बाद जेल जाने का पता चला
अनूप सिंह एक साल तक जेल में रहे और तरह-तरह के अत्याचार सहे। उनके परिवार वालों को एक सप्ताह बाद ही पता चल पाया था कि आपातकाल का विरोध करने के कारण वे अब्दुल्लापुर की जेल में बंद हैं। परिवार वालों को तो वे यह बताकर गए थे कि एक मीटिंग के लिए वे चार दिन के लिए लखनऊ जा रहे हैं। चार दिन बाद जब वे लौटे तो तब उन्हें पता चला कि वे तो जेल में बंद हैं। दो सप्ताह बाद उनकी मां बंसो देवी खीर-पूरी लेकर जेल पहुंची और उन्हें ही नहीं उनके सभी साथियों को भी प्यार से खिलाया। इतना ही नहीं मां ने उनसे यहां तक कहा कि अगर यह बता देता कि एक अच्छे काम के लिए जेल जा रहा हूं तो उसी प्रकार माला पहनाकर भेजती जैसे तुम्हारे मामा राम भजन को अंग्रेजी हुकूमत में माला पहनाकर देश की आजादी के लिए भेजा था। सुशील अनूप सिंह बताते हैं कि अपनी मां के इन शब्दों को सुनकर उनके पिता का सीना गर्व से चौडा हो गया था कि वे तो उनसे भी अधिक साहसी और लोकतंत्र की उनसे भी बडी रक्षक हैं। मां के शब्दों से उनका ही उनके साथियों का भी जोश बढ गया था।
जेल से छूटकर आए तो लोगों ने बात करना बंद कर दिया
सुशील अनूप सिंह बताते हैं कि उनके पिता एक साल तक जेल में बंद रहे और अत्याचार सहते रहे, फिर भी झुके नहीं और लोकतंत्र की रक्षा के लिए उन्होंने पूरा जीवन ही समर्पित कर दिया। जब वे जेल से छूटकर आए तो उस समय की कांग्रेस सरकार का लोगों में इस कदर खौफ था कि परिचित व मौहल्ले के लोग उनसे बात तक नहीं करते थे। उनसे दूर-दूर ही रहते थे। यही कारण था कि जब उन्होंने जटवाडा में अपने घर पर भारतीय क्रांतिदल का कार्यालय खोला तो कोई भी नहीं आया था, मगर इस सबसे उनके पिता बिल्कुल भी विचलित नहीं हुए क्योंकि उनके लिए तो समाज, देश व लोकतंत्र की रक्षा ही सर्वोपरि थी। उनके पिता अनूप सिंह मिलनसार, विनम्र व हर किसी के सुख-दुख में कंधे से कंधा मिलाकर साथ खडे रहने वाले थे। यही कारण रहा कि उन्होंने अपने व्यवहार से कुछ दिनों में ही सभी को अपना बना लिया और जो उनसे दूरी बनाकर रखते थे, उन सबके लिए वे हर दिल अजीज बन गए। उनके पिता ने वर्ष 1991 व वर्ष 1993 में जनता दल ने अपना विधानसभा प्रत्याशी भी बनाया था। वे गाजियाबाद सिटी बोर्ड के सदस्य भी रहे और इस दौरान उन्होंने जो विकास कार्य किए, वे आज भी मिसाील बने हुए हैं। और आज उनके जाने के बाद उनके पुत्र द्वारा किये गये अथक प्रयासों से शहर का एक मुख्य मार्ग उन्हीं (चौधरी अनूप सिंह)के नाम पर है।

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